17 Nov 2016

मुकम्मल की खोज

मुकम्मल की खोज 
रेडियो पर एक गीत बज रहा है -कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ,कहीं जमीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता। उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई कि वह अकेले नहीं , दुनिया के कई सारे लोग वह सब हासिल नहीं कर पाते , जो वे करना चाहते हैं। दरअसल ,जिंदगी खोया -पाया की अनवरत कहानी है। आप इसलिए हताश नहीं हो सकते कि आपने सिर्फ पाया -पाया ही क्यों नहीं ?


दार्शनिक मैकियावेली ने एक बहुत सुंदर बात कही है -जिंदगी का पूरा मतलब है अधूरापन। ऐसा कोई नहीं ,जिसे अपना चाहा मिल सकता हो। यहाँ तक कि बुद्धि से परे पशु -पक्षियों को भी वह हासिल नहीं होता ,जिसकी खोज में वे होते हैं। हम लाख चाहें ,योजनाबद्ध तैयारियाँ करें ,फिर भी असफलता को सार्थक रूप में समझने की तैयारी बगैर सारी तैयारी अधूरी है।संगीतकार मोजार्ट से जब एक मित्र ने पूछा कि आगे तुम क्या करना चाहते हो , तो उन्होंने कहा कि एक ऐसी रचना देना , जो मैं सचमुच देना चाहता हूँ ,लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसा नहीं हो पाएगा।
थोड़ी अटपटी -सी लगने वाली उनकी बात में गूढ़ दर्शन छिपा है। कोई भी रचनाकार ,जिसने जितनी भी बेहतर चीज़ रचना चाह रहा होता है। सच यह है कि सम्पूर्णता की खोज भले वह ,हम ,आप कर रहे हों या मैकियावेली-मोजार्ट अधूरी है। लेकिन यहाँ थोड़ा पेंच है। आपने जो पाया है ,उसके प्रति श्रद्धानवत हों ,तो जीवन की सार्थकता महसूस हो सकती है। अपने पाए -खोए का हिसाब करने बैठें ,तो इस बात पर ध्यान फोकस करें कि क्या है , जो आपको मिला तो आपकी आँखों में चमक आ जाएगी। आप पाएंगे कि आपके हिस्से बहुत कुछ  है , जो दूसरों के पास नहीं।

दरअसल , हमें खोए को भूलने की कला आनी चाहिए और पाए के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिए। अधूरापन भी मुक्कमल चीज है ,मैकियावेली की बात का एक अर्थ यह भी तो है।

रेडियो   है ,

No comments:

Post a Comment