18 Sept 2016

अवध और पश्चिमी उत्तरप्रदेश

लखनऊ जो कि गंगा जमुना तहज़ीब की  शानदार मिसाल है। आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से। लखनऊ शहर  नवाबी ,कला और संस्कृति का अनूठा मेल है। लखनऊ शहर से मेरा व्यक्तिगत जुड़ाव है। ये मेरा जन्मस्थान है और मेरा ननिहाल भी रहा है। कानपुर रोड ,चारबाग़ ,चौक ,हैदरगंज ,हज़रतगंज ,हनुमान सेतू ,लखनऊ विश्वविद्यालय,शाम ऐ अवध और अपना रामकृष्ण मठ निरालानगर से मेरा गहरा और अटूट रिश्ता है। बचपन से  इनकी राहों पे चल  रहा हूँ और 'पहले आप पहले आप ' की संस्कृति से रूबरू हो रहा हूँ। यहाँ कोई नाराज भी होता है तो ऐसा लगता है कि फूल झड़ रहे हों। भइया जी शब्द कानों को सुकून पहुँचता है। अवध की बात ही कुछ और है। जो लखनऊ में बात है वो कहीं नहीं है ,न दिल्ली में न मुम्बई न गुडगाँव और न ही नोएडा में ।

दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तरप्रदेश जो कि मेरी कर्मस्थली है बचपन से। मुरादाबाद जो कि मेरा पैतृक शहर है। यहाँ लालन पालन हुआ और शिक्षा यहीं से प्राप्त की। चुनावों का माहौल आते ही फिज़ा बदलने लगती है। जहर घुलने लगता है हवा में। धुर्वीकरण की राजनीति की बीसात बिछाई जाती है। माहौल बिगाड़ा जाता है। लोकसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर दंगे हों या फिर इसी तरह की अन्य घटनाएं। मथुरा में हाल फिलहाल में हुआ घटनाक्रम जिसमें दो पुलिस अधिकारियों की शहदात हुई। शहादत चाहें कश्मीर में हो या फिर मथुरा में ,शहादत मिलिट्री के जवान की हो या पुलिस के जवान की ,कलेजा भारत माता का ही चिरता है। सम्मान  दोनों की शहदात होना चाहिए। लेकिन सम्मान सबको बराबर नहीं मिलता। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हर नागरिक उन्हें सम्मान देना चाहता है। अधिकारियों को भी अपना कर्त्तव्य पूरी श्रद्धा और ईमानदारी से निभाना चाहिए क्योंकि सम्मान कमाया जाता है दिया नहीं जाता। आज फिर से इसी तरह की खबर  बिजनोर से आई है। जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि उचित कार्यवाही नहीं की गई है। प्रशासन को निष्पक्ष होके कार्यवाही करनी चाहिए। जिम्मेदारी और जवाबदेही उनकी संविधान और अशोक स्तम्भ के प्रति होनी चाहिए।  

बॉर्डर फिल्म का एक वाक्य याद आ गया 'तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो ,हम ही हम हैं तो क्या हम हैं '  



ठाकुर रामकृष्ण परमहंस महराज जी ने भी यही बात अपने शब्दों कुछ इस तरह बयां की है

"जितने लोगों को देखता हूँ ,सभी धर्म -धर्म करके एक दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। हिन्दू ,मुसलमान ,ब्रह्मज्ञानी ,शाक्त ,वैष्णव ,शैव -सभी परस्पर झगड रहे हैं। यह बुद्धि नहीं कि वे जिसे कृष्ण कह रहे हैं उन्हें ही शिव , उन्हें ही आद्यशक्ति कहा गया है ,उन्हें ही ईसा ,उन्हें ही अल्लाह कहा गया है। एक राम उनके हजार नाम। ऐसा सोचना ठीक नहीं कि मेरा धर्म ही ठीक है ,अन्य सभी गलत हैं। सारे पथों से उनकी प्राप्ति हो सकती है। आतंरिक व्याकुलता रहने से ही हुआ। अनन्त पथ -अनन्त मत। "





No comments:

Post a Comment