27 Aug 2016

जीवन का सार


जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं:
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।
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जीवन का सबसे बड़ा अपराध -
किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि -
किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।

जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।

मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।

दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।

मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।

कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह
नहीं देनी चाहिए।
क्योंकि,
कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में
मायूसी पैदा करती है।

कौन देता है उम्र भर का सहारा।
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।

♻ सुखी जीवन के ६ मन्त्र ♻
☑ अगर 'पूजा' कर रहे हो - तो 'विश्वास' करना सीखो !
☑ 'बोलने' से पहले - 'सुनना' सीखो !
☑ अगर 'खर्च' करना है - तो 'कमाना' सीखो !
☑ अगर 'लिखना' है - तो 'सोचना' सीखो !
☑ 'हार' मानने से पहले - फिर से 'कोशिश' करना सीखो !
☑ 'मरने' से पहले - खुल के 'जीना'

18 Aug 2016

रक्षाबंधन का पर्व

भाई -बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक का उत्सव रक्षाबंधन 18 अगस्त को
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श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के प्रेम का अनुपम उदाहरण है. इस बार यह त्योहार 18 अगस्त, दिन गुरुवार को है.
बहनों को इस
पर्व का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है. जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है तो वे यह कामना करती हैं कि उसके भाई के जीवन में कभी कोई कष्ट न हो, वह उन्नति करें और उसका जीवन सुखमय हो. वहीं भाई भी इस रक्षा सूत्र को बंधवाकर गौरवांवित अनुभव करते हैं और जीवन भर अपनी बहन की रक्षा करने की कसम खाते है. भाई बहन मे परस्पर स्नेह व प्यार इस पर्व की गरिमा को और बढ़ा देता है.
इस बार रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त -
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🌹 प्रथम मुहूर्त 6.00 a.m. से 07.30 a.m. तक
🌹 द्वितीय मुहूर्त 10.30 a.m. से दोपहर 12.00 p.m. तक
🌹 तृतीय मुहूर्त 12.00 p.m. से 01.30 p.m. तक
🌹 इस समय से सम्भव हो तो बचें 01.30 p.m. से 3.00 बजे तक राहू काल
🌹 चतुर्थ मुहूर्त 3.00 p.m. से 4.00 p.m.
🌹 विशेष 🌹
पूजा की थाली में ये 7 चीजें अनिवार्य रूप से होनी चाहिए
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इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधने से पहले एक विशेष थाली सजाती है. इस थाली में 7 खास चीजें होनी चाहिए.
1. कुमकुम
2. चावल
3. नारियल
4. रक्षा सूत्र (राखी)
5. मिठाई
7. गंगाजल से भरा कलश
पूजा की थाली में क्यो रखना चाहिए ये खास 7 चीजें -
1. कुमकुम -
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तिलक मान-सम्मान का भी प्रतीक है. बहन कुमकुम का तिलक लगाकर भाई के प्रति सम्मान प्रकट करती है तथा भाई की लंबी उम्र की कामना भी करती है. इसलिए थाली में कुमकुम विशेष रूप से रखना चाहिए.
2. चावल -
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चावल शुक्र ग्रह से भी संबंधित है. शुक्र ग्रह के प्रभाव से ही जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है. तिलक लगाने बाद तिलक के ऊपर चावल भी लगाए जाते हैं. तिलक के ऊपर चावल लगाने का भाव यह है कि भाई के जीवन पर तिलक का शुभ असर हमेशा बना रहे. तथा भाई को समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त हों.
3. नारियल -
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बहन अपने भाई को तिलक लगाने के बाद हाथ में नारियल देती है. नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है. श्री यानी देवी लक्ष्मी का फल. यह सुख - समृद्धि का प्रतीक है. बहन भाई को नारियल देकर यह कामना करती है कि भाई के जीवन में सुख और समृद्धि हमेशा बनी रहे और वह लगातार उन्नति करता रहे. यह नारियल भाई को वर्षपर्यंत अपने घर मे रखना चाहिए.
4. रक्षा सूत्र (राखी) -
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बहन राखी बांधकर अपने भाई से उम्र भर रक्षा करने का वचन लेती हैं. भाई को भी ये रक्षा सूत्र इस बात का अहसास करवाता रहता है कि उसे हमेशा बहन की रक्षा करनी है. रक्षा सूत्र का अर्थ है, वह सूत्र (धागा) जो हमारे शरीर की रक्षा करता है. रक्षा सूत्र बांधने से त्रिदोष शांत होते हैं. त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ. हमारे शरीर में कोई भी बीमारी इन दोषों से ही संबंधित होती है. रक्षा सूत्र कलाई पर बांधने से शरीर में इन तीनों का संतुलन बना रहता है. ये धागा बांधने से कलाई की नसों पर दबाव बनता है, जिससे ये तीनों दोष निंयत्रित रहते हैं.
5. मिठाई -
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राखी बांधने के बाद बहन अपने भाई को मिठाई खिलाकर उसका मुंह मीठा करती है. मिठाई खिलाना इस बात का प्रतीक है कि बहन और भाई के रिश्ते में कभी कड़वाहट न आए, मिठाई की तरह यह मिठास हमेशा बनी रहे.
6. दीपक -
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राखी बांधने के बाद बहन दीपक जलाकर भाई की आरती भी उतारती है. इस संबंध में मान्यता है कि आरती उतारने से सभी प्रकार की बुरी नजरों से भाई की रक्षा हो जाती है. आरती उतारकर बहन कामना करती है कि भाई हमेशा स्वस्थ और सुखी रहे.
7. गंगाजल से भरा कलश -
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राखी की थाली में गंगा!जल से भरा हुआ एक कलश भी रखा जाता है. इसी जल को कुमकुम में मिलाकर तिलक लगाया जाता है. हर शुभ काम की शुरुआत में जल से भरा कलश रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी कलश में सभी पवित्र तीर्थों और देवी-देवताओं का वास होता है. इस कलश की प्रभाव से भाई और बहन के जीवन में सुख और स्नेह सदैव बना रहता है.
रक्षाबंधन के अवसर पर वैदिक राखी बाँधें
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इस राखी को बनाने मे 5 वस्तुओं की आवश्यकता होती है ।
1. दूब (घास)
2. अक्षत (चावल)
3. केसर
4. चन्दन
5. पीली सरसों के दाने
इन पाँचों वस्तुओं को रेशम के कपडे में बाँध दें या सिलाई कर दें . फिर उसे कलावा में पिरो दें , इस प्रकार आपकी वैदिक राखी तैयार होती है .
वैदिक राखी में प्रयुक्त चीजो का महत्व -
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1. दूब
2. अक्षत
3. केसर
4. चंदन
5. पीली सरसों के दाने
1. दूब -
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राखी मे दूब की अवधारणा यह है कि जिस प्रकार दूब का अंकुर बो देने पर तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में उग जाता है. उसी प्रकार भाई का वंश और उसके सद्गगुणों का विकास हो. सदाचार मन की पवित्रता तेजी से बढती जाये.
2. अक्षत -
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राखी मे अक्षत की अवधारणा यह है कि हमारी भाई के प्रति श्रद्धा कभी क्षत - विक्षत न हो. सदैव बनी रहे.
3. केसर -
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राखी मे केसर की अवधारणा यह है कि जिस प्रकार केसर की प्रकृति तेज होती है उसी प्रकार हमारा भाई भी तेजस्वी हो. उसके जीवन में आध्यात्मिकता एवं भक्ति का तेज कभी भी कम न हो.
4. चंदन -
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राखी मे चंदन की अवधारणा यह है कि चंदन सुगंध और शीतलता देता है उसी प्रकार भाई के जीवन में कभी मानसिक तनाव न हो. उसका जीवन सुगंध और शीतलता से ओतप्रोत हो.
5. पीली सरसों के दाने -
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राखी मे पीली सरसों के दाने की अवधारणा यह है कि जिस प्रकार सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है उसी प्रकार उसका भाई समाज के दुर्गुणों एवं बुराइयों को समाप्त करने में तीक्ष्ण बने.
वैदिक राखी बाँधने की विधि -
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पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम अपने ईष्ट के चित्र पर अर्पित करनी चाहिए. फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे.
राखी बांधते समय यह श्लोक बोलें –
''येन बद्धो बलिःराजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चलः ||
🌹पं केदार मुरारी 🌹
By
Ramesh Verma
Secretary
Sri Ramakrishna Sevashrama
Moradabad

12 Aug 2016

जिंदगी


*खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।*
*आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।*

*अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।*
*क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।*

*ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है*
*शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!*

*एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी,*
*जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,*
*और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।*

*बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...*
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..*

*मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,*
*चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।*

*ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है*


*जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने*
*न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.*

*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..*
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!*

*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..*
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!*

*सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....*
*बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |*

*जीवन की भाग-दौड़ में क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?*
*हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..*

*एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम*

*_और_*

*आज कई बार*
*बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..*

*कितने दूर निकल गए,*
*रिश्तो को निभाते निभाते..*
*खुद को खो दिया हमने,*
*अपनों को पाते पाते..*


*लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,*
*और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..*

*"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,*
*लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..*

*मालूम है कोई मोल नहीं मेरा*

*_फिर भी,_*

*कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ...!*

6 Aug 2016

THE SONG OF THE SANNYASIN

The Song of the Sannyasin is a poem of thirteen verses written by Swami Vivekananda. Vivekananda composed the poem in July 1895 when he was delivering a series of lectures to a groups of selected disciples at the Thousand Island Park, New York. In the poem he defined the ideals of Sannyasa or monastic life.

Wake up the note! the song that had its birth
Far off, where worldly taint could never reach,
In mountain caves and glades of forest deep,
Whose calm no sigh for lust or wealth or fame
Could ever dare to break; where rolled the stream
Of knowledge, truth, and bliss that follows both.
Sing high that note, Sannyasin bold!  Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Strike off thy fetters! Bonds that bind thee down,
Of shining gold, or darker, baser ore;
Love, hate-good, bad-and all the dual throng,
Know, slave is slave, caressed or whipped, not free;
For fetters, though of gold, are not less strong to bind;
Then off with them, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Let darkness go; the will-o’-the wisp that leads
With blinking light to pile more gloom on gloom.
This thirst for life, for ever quench; it drags
From birth to death, and death to birth, the soul.
He conquers all who conquers self. Know this
And never yield, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
“Who sows must reap,” they say, “and cause must bring
The sure effect; good, good; bad, bad; and none
Escape the law. But whoso wears a form
Must wear the chain.” Too true; but far beyond
Both name and form is Atman, ever free.
Know thou art That, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
They know not truth who dream such vacant dreams
As father, mother, children, wife, and friend.
The sexless Self! Whose father He? Whose child?
Whose friend, whose foe is He who is but One?
The Self is all in all, none else exists;
And thou art That, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
There is but one –The Free-The Knower –Self!
Without a name, without a form or stain.
In Him is Maya dreaming all this dream.
The witness, He appears as nature, soul.
Know thou art That, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Where seekest thou? That freedom, friend, and this world
Nor that can give. In books and temples vain
Thy search. Thine only is the hand that holds
The rope that drags thee on. Then cease lament,
Let go thy hold, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Say,” Peace to all: From me no danger be
To aught that lives. In those that dwell on high.
In those that lowly creep, I am the Self in all!
All life both here and there, do I renounce,
All heavens and earths and hells, all hopes and fears.”
Thus cut thy bonds, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Heed then no more how body lives or goes,
Its task is done. Let Karma float it down;
Let one put garlands on, another kick
This frame; say naught. No praise or blame can be
Where praiser praised, and blamer blamed are one.
Thus be thou calm, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Truth never comes where lust and fame and greed
Of gain reside. No man who thinks of woman
As his wife can ever perfect be;
Nor he who owns the least of things, nor he
Whom anger chains, can ever pass thro’ Maya’s gates
So, give these up, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Have thou no home. What home can hold thee friend?
The sky thy roof, the grass thy bed; and food
What chance may bring, well cooked or ill, judge not.
No food or drink can taint that noble Self
Which knows itself. Like rolling river free
Thou ever be, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Few only know the truth. The rest will hate
And laugh at thee, great one; but pay no heed.
Go thou, the free, from place to place, and help
Them out of darkness, Maya’ veil. Without
The fear of pain or search for pleasure, go
Beyond them both, Sannyasin bold! Say-
                                                                “Om Tat Sat, Om!”
Thus, day by day, till Karma’s powers spent
Release the soul for ever. No more is birth,
Nor I, nor thou, nor God, nor man. The “I”
Has All become, the All is “I” and Bliss.
Know thou art That, Sannyasin bold! Say-

                                                                “Om Tat Sat, Om!”

The video of the song can be seen on the following link:
SONG OF THE SANNYASIN: Swami Vivekananda's Lyrics, sung by Kumuda

4 Aug 2016

30 Inspirational Thoughts.

*30 प्रेरणादायिक सुविचार जो किसी कि जिंदगी बदल सकता है। जिसने भी यह कलेक्शन किया होगा वह भी काबीले तारीफ है।*

*Quote 1 .* जब लोग आपको *Copy* करने लगें तो समझ लेना जिंदगी में *Success* हो रहे हों.

*Quoted 2 .* कमाओ…कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे.

*Quote 3 .* जिस व्यक्ति का लालच खत्म, उसकी तरक्की भी खत्म.

*Quote 4 .* यदि *“Plan A”* काम नही कर रहा, तो कोई बात नही *25* और *Letters* बचे हैं उन पर *Try* करों.

*Quote 5 .* जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की.

*Quote 6 .* भीड़ हौंसला तो देती हैं लेकिन पहचान छिन लेती हैं.

*Quote 7 .* अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं.

*Quote 8 .* कोई भी महान व्यक्ति अवसरों की कमी के बारे में शिकायत नहीं करता.

*Quote 9 .* महानता कभी ना गिरने में नहीं है, बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है.

*Quote 10 .* जिस चीज में आपका *Interest* हैं उसे करने का कोई टाईम फिक्स नही होता. चाहे रात के *1* ही क्यों न बजे हो.

*Quote 11 .* अगर आप चाहते हैं कि, कोई चीज अच्छे से हो तो उसे खुद कीजिये.

*Quote 12 .* सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.

*Quote 13 .* जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं.

*Quote 14 .* जितना कठिन संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी.

*Quote 15 .* यदि लोग आपके लक्ष्य पर *हंस* नहीं रहे हैं तो समझो *आपका लक्ष्य बहुत छोटा हैं.*

*Quote 16 .* विफलता के बारे में चिंता मत करो, आपको बस एक बार ही सही होना हैं.

*Quote 17 .* सबकुछ कुछ नहीं से शुरू हुआ था.

*Quote 18 .* हुनर तो सब में होता हैं फर्क बस इतना होता हैं किसी का *छिप* जाता हैं तो किसी का *छप* जाता हैं.

*Quote 19 .* दूसरों को सुनाने के लिऐ अपनी आवाज ऊँची मत करिऐ, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊँचा बनाऐं कि आपको सुनने की लोग मिन्नत करें.

*Quote 20 .* अच्छे काम करते रहिये चाहे लोग तारीफ करें या न करें आधी से ज्यादा दुनिया सोती रहती है ‘सूरज’ फिर भी उगता हैं.

*Quote 21 .* पहचान से मिला काम थोडे बहुत समय के लिए रहता हैं लेकिन काम से मिली पहचान उम्रभर रहती हैं.

*Quote 22 .* जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के *फैन* मत बनो.

*Quote 23 .* जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.

*Quote 24 .* आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.

*Quote 25 .* कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.

*Quote 26 .* इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.

*Quote 27 .* जिस दिन आपके *Sign #Autograph* में बदल जाएंगे, उस दिन आप *बड़े आदमी बन जाओगें.*

*Quote 28 .* काम इतनी शांति से करो कि सफलता शोर मचा दे.

*Quote 29 .* तब तक पैसे कमाओ जब तक तुम्हारा बैंक बैलेंस तुम्हारे फोन नंबर की तरह न दिखने लगें.

*Quote 30 .* *अगर एक हारा हुआ इंसान हारने के बाद भी मुस्करा दे तो जीतने वाला भी जीत की खुशी खो देता हैं. ये हैं मुस्कान की ताकत.*

Horoscope of 4th August 2016

 *सुप्रभात*🌞 *वन्देमातरम्*
🌿🍁🔔🐚🔆 🐚🔔🍁🌿
*ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः*
******************* 
*गुरुवार, 04 अगस्त 2016*
पूर्णिमांत माह : *श्रावण*
अमावस्यांत माह : श्रावण
पक्ष : *शुक्ल पक्ष*
तिथि : *द्वितीया (२५:५५:०७+)*
नक्षत्र : मघा (२६:५७:५७+)
विक्रम सम्वत : २०७३ सौम्य
शक सम्वत : १९३८ दुर्मुख
युगाब्द : ५११८
आयन : दक्षिणायन
ऋतु : वर्षा
योग : वरियान
सूर्योदय : ०५:४३
सूर्यास्त : १९:०७
चन्द्रास्त : २०:०७
चन्द्रोदय : ०६:५५
राहुकाल : १४:०६ से १५:४७
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*प्रभात दर्शन*
*स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।*
*स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते॥*
*भावार्थ-* मूर्ख की अपने घर में पूजा होती है. मुखिया की अपने गाँव में पूजा होती है. राजा की अपने देश में पूजा होती है. लेकिन विद्वान की हर जगह पूजा होती है
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🍁 *आपका दिन मंगलमय हो* 🙏
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श्री दिनेश शर्मा कटघर मुरादाबाद उत्तर प्रदेश , भारतवर्ष .

Contact No. +919690500331